हर सू बिखरे हैं जो, खुशबू की तरह यूँ
क्यों सामने आने से वो घबराए हुए हैं
बोलें हैं कि न आइए अब, मयकदे में यूँ
पैमानों की संज़ीदगी के हम सताए हुए हैं
हमराज़ हुए, हमनशीं, फिर जाने जिगर यूँ
कहते हैं, अहद ए वस्ल* के ठुकराए हुए हैं
मुस्कुराहट में छलावों के सिलसिले हैं यूँ
कि आईना वो परदों में छिपाए हुए हैं
Promise of union*