एक बिखरे सपने की तरह;
गिरा एक सुनहरा पंछी
जगमगाते आकाश से,
पत्थर की धरती पर गिरकर
रोता हुआ एक आह भर कर
बोला, यही है या वो थी
दुनिया? --- सपने की तरह;
इक सागर की लहर
जैसे थी इक सहर,
उस दिल की उमंग
उस दिल की तरंग
उठती है, गिर जाती है
रोती है, हंसती है--सपने की तरह.
अँधेरी रात में भटका
एक पंछी
ढूँढता है अपनी मंजिल,
यह दिल भी खोज रहा है
एक मखमल की धरती
जहाँ अच्छाई भी है, बुराई भी---सपने की तरह;
कब मिटेगी यह कशमकश?
कब सुलझेगा अनजाना जाल?
तब उड़ेगा वो सुनहरा पंछी
जगमगाते आकाश की ओर-- सपने की तरह!!!