Wednesday, 7 September 2016

#मेरे_घर_का_आस्मां

सूरज हुआ मध्यम...

दबे पाँव जब उसने आज
मेरी खिड़की में झांका था
अपनी बदली की ओढ़नी से
गुपचुप मही को ताका था

हाँ.... मैने देखा था उसे
सर को झुकाए
अपने ओज को किंचित कर
किरणों की बाहें फैलाए

धरा को छूने की आस लगाए....

मध्यम नहीं हुआ है दिनकर
बस प्रीत में शीश झुकाया है
क्षितिज की सुदूर
रेखाओं से उसने
सस्नेह पैगाम भिजवाया है.

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