Friday, 9 December 2011

रात के आकाश के राजा हो तुम----- किस तरह मेरे शहर के वातावरण में प्रकृति पर व्यावसायिक गतिविधियाँ हावी हो रही हैं, उसी सोच को अपने शब्दों में व्यक्त करना चाहा है , इस कविता में ....


सूरज जब अपनी रोशनी खोने लगे
हवा में जब सरगोशियाँ होने लगे
पंछी घरोंदों को जब लौटने लगें,
धीरे से, चुपके से बैंगनी आस्मां में
दिखा देते हो तुम चमत्कार.....

इतराते हुए, बल खाते हुए
मुस्कुराते हुए, इठलाते हुए
चमकते हो, दमकते हो
अपनी खूबसूरती दर्शाते हुए
करते हो सबको बेक़रार........

गगन का चाँद तो नहीं हो ना तुम?
बस एक 'मर्सेदीस' का 'लोगो' ही तो हो!

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...