वो वस्ल की शब और वो एहसास-ए-क़ैफे मुख़्तसर
भीगा था चाँद भी जब तेरे हुस्न की रानाई में
अब धुआं धुआं से होते लफ्ज़ और खामोश चेहरे
दरो दीवार पर बदनुमां निशां हो गए हों जैसे ।।
भीगा था चाँद भी जब तेरे हुस्न की रानाई में
अब धुआं धुआं से होते लफ्ज़ और खामोश चेहरे
दरो दीवार पर बदनुमां निशां हो गए हों जैसे ।।