Saturday, 27 August 2016

उसकी फटी चादर पर पड़े चंद सिक्कों की तरह
पुरानी यादों की चमक ने उसे मुस्कुराना सिखाया था

झुकी नज़र जो बस देखती थी बढ़ते कदमों के निशां
आज उसने अपनी ही ज़िद्द में सर ऊँचा उठाया था

अपने ख्वाबों की एहमियत का अंदाजा हुआ है उसे
उसकी आँखों की चमक ने कई बार ये जताया था

उसकी रुह के एहसास को छुआ था कभी
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
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*उसकी फटी चादर पर पड़े चंद सिक्कों की तरह
  पुरानी यादों की चमक ने उसे मुस्कुराना सिखाया था...
  बढ़ती उम्र की कुंचित लकीरों में
  आज उसने जीवन का मर्म पाया था।।**

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...