Monday, 16 January 2017



             फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा

कल जो जला था अपनी ही आग में
वो दिया अब तेरे काजल सा काला होगा

टूट कर बिखरी हैं किरचें जिस पैमाने की
कैसे साक़ी ने उस जाम को संभाला होगा

जिसकी ज़ुम्बिश से लरज़ते थे दरीचे भी उनके
कब ये जाना था कि सियासतों का ताला होगा

कांपते कदमों की आहटों का हुआ है यूं असर
उसने रातों की नींदों में तो खलल डाला होगा

चली है कोई चाल नई  हम नफ़स ने कहीं
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा ।।



Through all the possible
Virtuous and cheery ways
I glanced at you, immersed
In bright and shiny ray
Your charm and beauty
Swayed me away....
Seldom I knew
I'll bear the sear
Writhing in agony
At the end of the day
Alas! If only I'd espy
.
.

Your two great eyes will slay


हर सू बिखरे हैं जो, खुशबू की तरह यूँ
क्यों सामने आने से वो घबराए हुए हैं

बोलें हैं कि न आइए अब, मयकदे में यूँ
पैमानों की संज़ीदगी के हम सताए हुए हैं

हमराज़ हुए, हमनशीं, फिर जाने जिगर यूँ
कहते हैं, अहद ए वस्ल* के ठुकराए हुए हैं

मुस्कुराहट में छलावों के सिलसिले हैं यूँ
कि आईना वो परदों में छिपाए हुए हैं


Promise of union*

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...