आज पकड़ ही लिया उसे....वर्षों से कोशिश कर रहा था. कभी-कभी ऐसा होता है कि जीने की जद्दोजहद में पता ही नहीं चलता वक़्त का और उसकी धारा में हम बस बहते ही चले जाते हैं. आज सर्दी की गुनगुनाती अलसाई दोपहरिया में धूप का आनंद ले रहा था, जब उससे मिलने का मौका मिला. बरसों पहले जब माँ ने घर से निकल जाने को कहा था, तभी छोड़ दिया था उसे. सोचा था अब आगे जो भी होगा देखा जायेगा. बस, इसी देखा जायेगा में दो दशक कब खर्च हो गए, पता ही न चला. खैर, आज जब मिला हूँ तो चेहरे पर मेरे मुस्कराहट ही है. हाँ......शिकवे-शिकायतें तो हैं, पर मन नहीं माना कि इतना खूबसूरत मौका यूँ ही व्यर्थ कर दूँ. तो आज सोचा है बहुत सी बातें करनी हैं. सोच रखा है वो सब कह दूंगा, स्वीकार कर लूँगा वो सब, जो कई-कई परतों में दबा कर रख छोड़ा है........ अभी-अभी चंद्रा की आवाज़ सुनाई दी है, " थोडा फ्रूट लोगे अभी?" मेरा जवाब न मिलने पर भी वो कुछ फल ले ही आई है. ऐसी ही है चंद्रा. ना ना .....उसे दोष नहीं दे रहा हूँ. इतनी अच्छी पत्नी साबित हुई है वो. ज़िन्दगी के कितने ही वर्ष हमने अपनी गृहस्थी बसाने सँवारने में बिताये हैं. दो प्यारे बच्चे जैसे सारे खालीपन को भर देते हैं. और क्या चाहिए किसी को? फल खाता हुआ मैं अब भी मुस्कुरा रहा हूँ. उससे मिला जो हूँ आज. मेरी मिट्टी की जड़ें गहरी हैं. कहीं-कहीं तो इतनी गहरी कि लगता है जैसे ज़मीं ही उखाड़ डालेंगीं. पर इन्ही से तो वो फूल भी मिले हैं जो मेरे आँगन को महकाते हैं. तो, मैं मुस्कुरा रहा हूँ. ज़ख्मों का दर्द तो है, पर मेरी बगिया का यह पेड़ कितना भरा पूरा है. इसे देख कर मैं भला क्यों न खुश होऊँ? हाँ, तो मैं कह रहा था, आज उससे मिला तो अच्छा लगा. मन भर कर बात की. ऐसा लगा इतना बोलूं कि कुछ कहना बाकी न रहे. ऐसी मीठी धूप, अलसाया सा मैं. जीवन जैसे धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार कम कर रहा था. सब कुछ रुका-रुका सा, थमा-थमा सा. सुकून भर देने वाला एहसास. "शाम को मूवी देखे तो कैसा रहेगा?" सुन कर चंद्रा भी खुश हो गयी थी. "हाँ, बच्चों को भी तैयार कर लेते हैं और हाँ, खाना बाहर ही खायेंगे." आज ऐसा लग रहा है कि उसके आने से जीवन बदलने लगा है. सब कुछ अच्छा लगने लगा है. शायद चंद्रा ठीक ही कहती है कि मैं अब चिडचिडा सा नहीं रहता और गुस्सा भी अब कम आता है. उसे भी शायद यह मालूम ही है कि यह मेरी उससे मुलाकात का ही नतीजा है. खुद से ही जो मिला था आज मैं.
Saturday, 18 February 2012
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My window view
Looking out of My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current Juncture. I lived a few Delightful Mom...
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लफ्ज़ रास्ता ढूँढते हैं...... किसी लबलबाते, लरज़ते आब-ए-दरिया से.. गहरी, अँधेरी, बेचैन, बंद गुफाओं से.. कुलबुलाते, फुसफुसाते, फड़फ...
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