Saturday, 19 March 2016


हर लम्हा उसके ख्याल ए विसाल से दूर भागा हूँ मैं
कि हिज्र की लम्बी वीरान रातों में यूँ जागा हूँ मैं।।

Wednesday, 16 March 2016

परदों से झांकती ज़िदगी
अनंत संभावनाओं की तलाश में
जैसे तैयार हो रही हो
एक सफल उड़ान भरने को...

एक परितृप्त श्वास से भरपूर
और नवीन सामर्थ्य से परिपूर्ण
ये उठी है नया पराक्रम लेकर
नवजीवन के प्रारम्भ का विस्तार छूने।

परिधियों से बाहर आने की आतुरता
आसक्ति नहीं, प्रतिलब्धता
समीक्षा नहीं,  अनंतता
विस्तारित व्योम को बस छू लेने की लालसा.....

परदों से झांकती ज़िन्दगी।।


शाख से किसी पत्ते का गिरना
फूल का उसकी डाली से बिखर जाना
या किसी अपने का बिछड़ना, टूटना
दर्द तो देता ही है.....

बीते दिनों के सांझे दिन हों
या खामोश मुस्कुराती सुहानी रातें
यादों की परछाईयों से हो कर गुज़रना
दर्द तो देता ही है....

ज़िंदगी भर उन तमाम रास्तों पर
साथ चले कदमों की छाप का
फिसलती रेतीली आंधियों में खोना
दर्द तो देता ही है....

अब थक कर बैठोगे तुम?
और वक्त को रोक दोगे?
ज़ार ज़ार रोओगे
और लम्हा लम्हा टूटोगे?

अपनी आकांक्षाओं को
तुम कभी रुकने ना देना
इन अवरोधों को
तुम यूं जीतने ना देना...

ज़िंदगी कभी रुकती नहीं....
सामने शिकस्तों के
ऐसे कभी झुकती नहीं....

मेरे गिरते लरज़ते वजूद
को पहचान देने वाले
यूँ ही बने रहना मेरे
हौसला बुलंद रहनुमा तुम...

कि मैं भी गुरूर था किसी का
ख़ाकिस्तर होने से पहले
अब सबब ये है कि आरज़ू है
उनकी नज़रे इनायत की।।


The unsaid sentiment by 'The Old' to 'The Young'...isn't it?

Monday, 11 January 2016

हमने यूँ ही तो नहीं
दिल-ए-उम्मीद-वार
की कसम खाई है,
हर शाम उसके
डूबने से पहले, सूरज
की बिंदी रोज़ लगाई है।।

Saturday, 12 December 2015

लफ्ज़ रास्ता ढूँढते हैं......

किसी लबलबाते, लरज़ते
आब-ए-दरिया से..
गहरी, अँधेरी, बेचैन,
बंद गुफाओं से..
कुलबुलाते, फुसफुसाते,
फड़फड़ाते परिंदों से..
बेहिसाब, बेइख्तेयार,
बुलंद अरमानों से..
ये लफ्ज़
...रास्ता ढूँढते हैं।।


Tuesday, 8 December 2015

आईना गौर से जो कभी यूँ ही देख लिया होता
जिक्र-ए-पशेमानी में तू आप अपना जवाब होता।।

*पशेमानी = regret

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...