Wednesday, 16 March 2016

शाख से किसी पत्ते का गिरना
फूल का उसकी डाली से बिखर जाना
या किसी अपने का बिछड़ना, टूटना
दर्द तो देता ही है.....

बीते दिनों के सांझे दिन हों
या खामोश मुस्कुराती सुहानी रातें
यादों की परछाईयों से हो कर गुज़रना
दर्द तो देता ही है....

ज़िंदगी भर उन तमाम रास्तों पर
साथ चले कदमों की छाप का
फिसलती रेतीली आंधियों में खोना
दर्द तो देता ही है....

अब थक कर बैठोगे तुम?
और वक्त को रोक दोगे?
ज़ार ज़ार रोओगे
और लम्हा लम्हा टूटोगे?

अपनी आकांक्षाओं को
तुम कभी रुकने ना देना
इन अवरोधों को
तुम यूं जीतने ना देना...

ज़िंदगी कभी रुकती नहीं....
सामने शिकस्तों के
ऐसे कभी झुकती नहीं....

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