नभ के घन
रात के तम में,
बरसते हैं ऐसे;
आँख के आंसू
आँख की लाली में,
तैरते हैं जैसे.
काली घटा के
ये श्वेत छींटे
जाने किसके आंसू हैं?
मुसाफिर, क्या तुम इन
छींटों से बच पाओगे ?
क्या रात को तम से
आँख कोआंसू से
अलग कर पाओगे?
घनघोर घटा के
काले बादलों का शोर ,
दिल को उड़ा ले
जाने किस ओर;
इस शोर में डूब जाओ तुम,
काले बादलों के
श्वेत छींटों में
भीग जाओ तुम.
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