Tuesday, 9 August 2011

बरसात

नभ के घन
रात के तम में,
बरसते हैं ऐसे;
आँख के आंसू
आँख की लाली में,
 तैरते हैं जैसे.


काली घटा के
 ये श्वेत छींटे
 जाने किसके आंसू हैं?
मुसाफिर, क्या तुम इन
छींटों से बच पाओगे ? 
 क्या रात को तम से
 आँख कोआंसू से
अलग कर पाओगे?


 घनघोर घटा के
काले बादलों का शोर ,
दिल को उड़ा ले
जाने किस ओर;
 इस शोर में डूब जाओ तुम,
 काले बादलों के
 श्वेत छींटों में
भीग जाओ तुम.

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