Tuesday, 9 August 2011

यूँ ही कभी -कभी

मिले थे तुमसे कभी
बात पुरानी हो गयी ;
वक़्त कुछ ऐसा बदला आज
मुझी को मुझसे मिलवा 
दिया   मेरे यार ने.
               
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ख़याल हों, पंछी हों, बादल हों या हवा
मौसम को सुहाना कर ही जाते हैं.

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ज़िन्दगी के ग़मों में कुछ इस कदर मसरूफ थे हम,
आज आइना गौर से देखा तो अच्छा लगा.

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वक़्त का दरिया बहा ले गया तिनके की तरह
सर उठाया तो पाया खुद को वहीँ.......
जहाँ डूबे थे बरसों पहले हम.

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कुछ न कहना, फिर कह कर भूल जाना
खुद से ही बात न करने की आदत है मुझे.

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जिंदगी के बही-खातों में गर्क हो गए कुछ इस तरह
कि जी रहें हैं अभी, यही याद न रहा.

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वक़्त ने कुछ ऐसी रफ़्तार दिखाई
पुरानी किताब से जब धूल हटाई
तो कहानी बदल चुकी थी........

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असर हुआ कुछ ऐसा
उनकी बातों का,
कि दिलों के राज़
खोलने लगे हम.

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