चुटकियाँ
by Indu Gulati on Monday, 25 April 2011 at 12:29
कुछ इस तरह वक़्त बीता जश्ने- ज़िन्दगी में,
आज मिली...
तो अनजानी सी लगी
खुद को मैं.
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घबरा कर छुपा दिया था जिस खुशबू को...
जाना न था
कि जीते आये हैं उसी के दम पर अब तक हम.
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उड़ते, उखड़े, फिसलते, गिरते- पड़ते
ये शब्द जंगली से लगते हैं ....
काफ़िर पकड़ में आयें तो
अपना बना लूँ .
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तुझे चाहना, न चाहना
अपने बस कि बात न थी
हम भी कुछ जी लिए होते
वर्ना;
तेरे मिलने के बाद.
आज मिली...
तो अनजानी सी लगी
खुद को मैं.
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घबरा कर छुपा दिया था जिस खुशबू को...
जाना न था
कि जीते आये हैं उसी के दम पर अब तक हम.
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उड़ते, उखड़े, फिसलते, गिरते- पड़ते
ये शब्द जंगली से लगते हैं ....
काफ़िर पकड़ में आयें तो
अपना बना लूँ .
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तुझे चाहना, न चाहना
अपने बस कि बात न थी
हम भी कुछ जी लिए होते
वर्ना;
तेरे मिलने के बाद.
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