Tuesday, 9 August 2011

मन के मंजीरे

चुटकियाँ

by Indu Gulati on Monday, 25 April 2011 at 12:29

कुछ इस तरह वक़्त बीता जश्ने- ज़िन्दगी में,
आज मिली...
तो अनजानी सी लगी
खुद को मैं.
-----------------

घबरा कर छुपा दिया था जिस खुशबू को...
जाना न था
कि जीते आये हैं उसी के दम पर अब तक हम.

-----------------

उड़ते, उखड़े, फिसलते, गिरते- पड़ते
ये शब्द जंगली से लगते हैं ....
काफ़िर पकड़ में आयें तो
अपना बना लूँ .
----------------

तुझे चाहना, न चाहना
अपने बस कि बात न थी
हम भी कुछ जी लिए होते
वर्ना;
तेरे मिलने के बाद.

No comments:

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...