Monday, 17 April 2017



मुझे क्यों हो डर तबाह ओ दिल ओ दीं का
मेरे यार की दुआओं का फैज़ है मुझ पे।

फैज़= favour ( here)

Thursday, 16 March 2017

#शनिवार_शायरी
#अभिव्यक्ति

विचार का व्योम से
विवेक का दृष्टिकोण से

सौंदर्य का अलंकार से
अस्तित्व का आभार से

वाणी का कृत्य से
स्नेह का हृदय से

गूढ़ता का भेद से
समय का रेत से

रीति का काल से
समझ का सवाल से

पर्व का आयोजन से
वचन का प्रयोजन से

शून्य का ज्ञान से
अहं का मान से

माता का अपत्य से
सत्य का तत्व से

दृष्टि का ध्यान से
वक्ता का व्याख्यान से

अभ्यंतर संवाद अभी बाकी है…..
सृष्टि से साक्षात्कार अभी बाकी है…..


*व्योम- ethereal/celestial energy which fills all the spaces(here)
*कृत्य- act
*अपत्य - offspring
*तत्व - fact
* अभ्यंतर- internal

Friday, 17 February 2017

FULL CIRCLE

यह कोई आज की बात नहीं है. और कुछ ऐसा भी नहीं हुआ है कि ख़ास तौर पर इसका जिक्र किया जाये; पर ऐसा हुआ है कई दशकों बाद. हैरानी की बात कहें या जीवन का सत्य ....पर सच यही है. मुझे याद है वो गुड़िया जैसी छोटी सी लड़की नीले रंग का फ्रिल वाला फ्राक पहने एक गीत गुनगुनाती हुई. उस धरती से पहचान करती हुई, जिससे उसे बाद में प्रेम हो गया था. संसार के लिए उसकी आँखों में प्रश्न नहीं थे- सिर्फ जिज्ञासा थी, कौतुहल था. संध्या समय गगन के रंगों का बदलना देखती थी वो. छत पर रात को ठंडी सफ़ेद चादरों पर लेटी चाँद और तारों से बात करती थी. छूना चाहती थी उन्हें. चिड़ियों का कलरव सुनना उसे भाता था. फूलों के रंगों को अपनी ड्राइंगबुक के पन्नों पर उतारना चाहती थी. कभी अपने कमरे की खिड़की की सींखचों से झांकती, तो कभी खुली छत पर जाती, जैसे प्रकृति के रंगों में डूबी थी वो. हाँ, पिताजी की शेर-ओ-शायरी का भी असर था उस पर. हर शब्द को ध्यान से सुनना, समझना और फिर उस कथनी के मूलरूप को जानना उसका शौक था. इसी तरह प्रकृति और शायरी उसकी सोच का हिस्सा बन गए थे. चार वर्ष की आयु थी तब उसकी. और आज जब जीवन की बहुत सी घटनाओं और दुर्घटनाओं की साक्षी बन चुकी है वो, उसे समझ में आता है कि अब एक जीवन-चक्र पूरा हो चुका है. परन्तु एक बात जो आज भी नहीं बदली है- उसका वही कौतुहल और जिज्ञासा. चिड़ियों का चहचहाना, आकाश का रंग बदलना, शब्दों को यहाँ वहां टिका कर एक रूप देना....आज भी उसे यह सब विस्मित करता है.

नहीं नहीं, कोई कहानी नहीं है ये! आप भी सोच रहे होंगे कि किसी के जीवन का यात्रा वृतांत शुरू होगा अब. ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. ये तो बस एक संवाद है और इसकी व्याख्या यही है कि संसार के नियम, करम एक तरफ हैं जिसमें घटित घटनाओं से व्यक्ति की पहचान बनती है, साथ ही एक और बड़ा सच भी कि जिस व्यक्तित्व को ले कर इंसान पैदा होता है, जिंदगी की भागदौड़ में उसे कभी-कभी खो भी देता है..... और जब अपने आप से उसकी मुलाकात होती है तो उसका अद्भुद प्रभाव होने लगता है. इसीलिए कहा है कि एक जीवन चक्र पूरा हुआ अब मेरा . अपने आप से पहचान हुई है आज.....


Friday, 10 February 2017



             A Scene From My Window                

                         प्रगाढ़ विचार
                        ____________

सुनो...
कुछ कहूँ?
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वृहत झरोखा, मंजुल दृश्य
द्वितीय तिथि, शुक्ल पक्ष(31st Dec 2016)
महीन सुधाकर, तारकमंडल
हरी दूब पर विराट तरुवर।

मौन विभावरी, चंद्र ज्योत्स्ना
संध्या सितारे, नवग्रह वृंद
शुभ्र दिवस, स्वर्णिम सूरज
नीलाभ गगन, मृदुरूप सारंग।

दिनकर कंचन, सुरम्य जगत
कलरव पंछी, सिंदूर दमक
मुदित हृदय, सौरभ आभा
नववर्ष नमन, नव अभिनंदन।।

Monday, 16 January 2017



             फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा

कल जो जला था अपनी ही आग में
वो दिया अब तेरे काजल सा काला होगा

टूट कर बिखरी हैं किरचें जिस पैमाने की
कैसे साक़ी ने उस जाम को संभाला होगा

जिसकी ज़ुम्बिश से लरज़ते थे दरीचे भी उनके
कब ये जाना था कि सियासतों का ताला होगा

कांपते कदमों की आहटों का हुआ है यूं असर
उसने रातों की नींदों में तो खलल डाला होगा

चली है कोई चाल नई  हम नफ़स ने कहीं
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा ।।



Through all the possible
Virtuous and cheery ways
I glanced at you, immersed
In bright and shiny ray
Your charm and beauty
Swayed me away....
Seldom I knew
I'll bear the sear
Writhing in agony
At the end of the day
Alas! If only I'd espy
.
.

Your two great eyes will slay


हर सू बिखरे हैं जो, खुशबू की तरह यूँ
क्यों सामने आने से वो घबराए हुए हैं

बोलें हैं कि न आइए अब, मयकदे में यूँ
पैमानों की संज़ीदगी के हम सताए हुए हैं

हमराज़ हुए, हमनशीं, फिर जाने जिगर यूँ
कहते हैं, अहद ए वस्ल* के ठुकराए हुए हैं

मुस्कुराहट में छलावों के सिलसिले हैं यूँ
कि आईना वो परदों में छिपाए हुए हैं


Promise of union*

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...