Friday, 24 August 2018

तेरे औज ए ख़याल के कायल हैं हम ऐ हमनफ़स
पर मेरे मिजाज़ ए शहर पे तू इस तरह तो तंज़ न कर
8/16.

Monday, 20 August 2018

बिजलियाँ रखते आस्तीनों में
बादलों का गर लिबास होता।।
©Aug 2014

Saturday, 18 August 2018

शाम की तस्वीर पर ये रंग-ए-तहरीर हुआ
चाँद भी देखो आज आब-ए-शमशीर हुआ
©


Monday, 13 August 2018

#अनुभूति
#छोटीसीखुशी
#सरल

सांझ के रंगों में
बहती बयार
उड़ते बादलों के
बदलते आकार
सिंदूरी क्षितिज पर
पंछी परवाज़
झूमते वृक्ष और
खिलते गुलाब
सावन की बूंदें
परिमित बरसात
हर सूं है बिखरा
जादू बेहिसाब
©Indu


Thursday, 19 April 2018

लफ्ज़ रास्ता ढूँढते हैं......

किसी लबलबाते, लरज़ते
आब-ए-दरिया से..

गहरी, अँधेरी, बेचैन,
बंद गुफाओं से..

कुलबुलाते, फुसफुसाते,
फड़फड़ाते परिंदों से..

बेहिसाब, बेइख्तेयार,
बुलंद अरमानों से..

ये लफ्ज़
रास्ता ढूँढते हैं।।

लफ्ज़ों की कोई उम्र नहीं होती। लफ्जों को किसी दायरे में भी बाँधा नहीं जा सकता। सदियों से दुनिया की हर तहज़ीब में इनके ताने बाने का जादू चलता आ रहा है। शायरी हमेशा से एक ऐसा ज़रिया रहा है जिसके मज़बूत शानों पर जज़्बातों की आँधियों ने अपने बिखरे, बेकाबू किरदारों को समेट कर सूकून पाया है।

Poetry Darbar एक ऐसा मंच है जिसमें हर रंग, हर उम्र और हर दरजे की नुमाईंदगी करते शायरों और कवियों का मेला लगता है। हर महीने के तीसरे इतवार को गुड़गांव में होने वाली इस शायरी की  महफिल में कोई ऐसा एहसास नहीं, जिसे सभी कहने वालों और सुनने वालों ने एक साथ जिया न हो।

इस मंच की 17 अप्रैल 2016 को हुई ऐसी ही एक महफिल में न सिर्फ गुड़गांव के, बल्कि दिल्ली के भी युवा और उत्साही शायरों ने एक ऐसा दिलनशीं माहौल ईज़ाद किया, जहाँ जज़्बात भाषा की क़ैद में नहीं थे। चाय की चुस्कियों का लुत्फ लेते अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू के लिखने सुनने वालों के अशरार जैसे एक ही माला में गुंथे मुख़्तलिफ रंगों के मोती थे।

इंद्रजीत घोषाल की रहनुमाई में Poetry Darbar अपने इस सफर के आगा़ज़ के साथ ही कुछ ऐसे निशां दिलों के कैनवास पर बिखेर रहा है कि हमें पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में गुड़गांव के अदबी गलियारों में ये अपना नाम रोशन करेगा।
17april2016

Monday, 23 October 2017

सब्र है, अश्क हैं, शिकायतें भी हैं
इश्क है, वफा है, इनायतें भी हैं
ये फरेब-ए-साक़ी-ए-महफिल है दोस्त
यहाँ दिलों को तोड़ने की रिवायतें भी हैं


आस्मां हो जाए जो धनक रंग इक दिन
उस ख्वाब की तलाश बाकी है अभी।।

इन्सां होने की रस्म बस निभा दे जो वो
इस सोच का सफर तमाम बाकी है अभी।।

खुशबू सा बिखरा है अधूरा सा है मगर
निगाहों में उसकी आफताब बाकी है अभी।।

रहबर ए मंज़िल तो हुए, फिर रुठ गये मगर
दिल का ना मुकम्मल सवाब बाकी है अभी।।

( रहबर ए मंज़िल जो थे कभी, छूट गए तो क्या
  दर्दे जहां का ये सफ़र बाकी है अभी )

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...