लफ्ज़ रास्ता ढूँढते हैं......
किसी लबलबाते, लरज़ते
आब-ए-दरिया से..
गहरी, अँधेरी, बेचैन,
बंद गुफाओं से..
कुलबुलाते, फुसफुसाते,
फड़फड़ाते परिंदों से..
बेहिसाब, बेइख्तेयार,
बुलंद अरमानों से..
ये लफ्ज़
रास्ता ढूँढते हैं।।
लफ्ज़ों की कोई उम्र नहीं होती। लफ्जों को किसी दायरे में भी बाँधा नहीं जा सकता। सदियों से दुनिया की हर तहज़ीब में इनके ताने बाने का जादू चलता आ रहा है। शायरी हमेशा से एक ऐसा ज़रिया रहा है जिसके मज़बूत शानों पर जज़्बातों की आँधियों ने अपने बिखरे, बेकाबू किरदारों को समेट कर सूकून पाया है।
Poetry Darbar एक ऐसा मंच है जिसमें हर रंग, हर उम्र और हर दरजे की नुमाईंदगी करते शायरों और कवियों का मेला लगता है। हर महीने के तीसरे इतवार को गुड़गांव में होने वाली इस शायरी की महफिल में कोई ऐसा एहसास नहीं, जिसे सभी कहने वालों और सुनने वालों ने एक साथ जिया न हो।
इस मंच की 17 अप्रैल 2016 को हुई ऐसी ही एक महफिल में न सिर्फ गुड़गांव के, बल्कि दिल्ली के भी युवा और उत्साही शायरों ने एक ऐसा दिलनशीं माहौल ईज़ाद किया, जहाँ जज़्बात भाषा की क़ैद में नहीं थे। चाय की चुस्कियों का लुत्फ लेते अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू के लिखने सुनने वालों के अशरार जैसे एक ही माला में गुंथे मुख़्तलिफ रंगों के मोती थे।
इंद्रजीत घोषाल की रहनुमाई में Poetry Darbar अपने इस सफर के आगा़ज़ के साथ ही कुछ ऐसे निशां दिलों के कैनवास पर बिखेर रहा है कि हमें पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में गुड़गांव के अदबी गलियारों में ये अपना नाम रोशन करेगा।
17april2016
किसी लबलबाते, लरज़ते
आब-ए-दरिया से..
गहरी, अँधेरी, बेचैन,
बंद गुफाओं से..
कुलबुलाते, फुसफुसाते,
फड़फड़ाते परिंदों से..
बेहिसाब, बेइख्तेयार,
बुलंद अरमानों से..
ये लफ्ज़
रास्ता ढूँढते हैं।।
लफ्ज़ों की कोई उम्र नहीं होती। लफ्जों को किसी दायरे में भी बाँधा नहीं जा सकता। सदियों से दुनिया की हर तहज़ीब में इनके ताने बाने का जादू चलता आ रहा है। शायरी हमेशा से एक ऐसा ज़रिया रहा है जिसके मज़बूत शानों पर जज़्बातों की आँधियों ने अपने बिखरे, बेकाबू किरदारों को समेट कर सूकून पाया है।
Poetry Darbar एक ऐसा मंच है जिसमें हर रंग, हर उम्र और हर दरजे की नुमाईंदगी करते शायरों और कवियों का मेला लगता है। हर महीने के तीसरे इतवार को गुड़गांव में होने वाली इस शायरी की महफिल में कोई ऐसा एहसास नहीं, जिसे सभी कहने वालों और सुनने वालों ने एक साथ जिया न हो।
इस मंच की 17 अप्रैल 2016 को हुई ऐसी ही एक महफिल में न सिर्फ गुड़गांव के, बल्कि दिल्ली के भी युवा और उत्साही शायरों ने एक ऐसा दिलनशीं माहौल ईज़ाद किया, जहाँ जज़्बात भाषा की क़ैद में नहीं थे। चाय की चुस्कियों का लुत्फ लेते अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू के लिखने सुनने वालों के अशरार जैसे एक ही माला में गुंथे मुख़्तलिफ रंगों के मोती थे।
इंद्रजीत घोषाल की रहनुमाई में Poetry Darbar अपने इस सफर के आगा़ज़ के साथ ही कुछ ऐसे निशां दिलों के कैनवास पर बिखेर रहा है कि हमें पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में गुड़गांव के अदबी गलियारों में ये अपना नाम रोशन करेगा।
17april2016
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