Friday, 21 October 2011

कुछ अपने पल....(मन से हुई बात ......)



"कुछ अपने पल"(मन से हुई कल बात)

बात हुई कल उन से
लगे कुछ उदास से
मैंने पूछा तो बोले-
बंद कोठारी में रहता हूँ,
रोशनी को तरसता हूँ,
अकेला हूँ सालों से,
कोई साथी ढूंढता हूँ

तुमने दस्तक दी आज
जगी मुझमें इक आस
बैठो मेरे पास दो घड़ी
बतिया लें तुमसे अनकही।

कहूँ क्या, कैसे, हैरान हूँ
कुछ कहने को नादान हूँ
पा लूं तुमको जो इस पल
मैं भी जी लूं कुछ अपने पल।

चलो कुछ बात करें
जीवन की किताब के
आओ कुछ पन्नें पलटें
तुम सिर्फ कहो, हम सिर्फ सुनें।

तारीखों की डोर पे
सालों का हिसाब है
भटके हुए सायों का
यही तो अंदाज है।
जंजीरों में बँधा है जो
ये कलुषित प्रतिबिंब
आजाद करो अब इसे
पाओ जीवन सुगंध।।


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