Tuesday, 9 August 2011

राहें


कभी खामोश और
कभी चीखती इस राह में
एक ठहराव, एक शून्य सा है
जो उपर उठता सा प्रतीत होता है
जैसे हल्की सी, खाली सी
ज़िन्दगी स्वयं ही तैरती जा रही हो
डोलती नाव की तरह---
जैसे हल्की सी, खाली सी
ज़िन्दगी स्वयं ही उड़ती जा रही हो
आवारा बादल की तरह---


यह पानी और धुएं की रेखा
धुंधले निशाँ छोडती जाती है
जो इन खामोश और चीखते
क्षणों में ग़ुम हो जाते हैं;
पर हलचल सी मचा जाते हैं
एक समतल सतह पर,
आने वाली सभी रेखाओं
का मार्ग रोकते हुए.


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