Tuesday, 9 August 2011

कवि का मन

कवि, तुम शब्दों को
क्या रूप देते हो?
जिसे तुम कविता
का नाम देते हो!


कविता तो जाल है
उलझा हुआ,
तुम कैसे इस जाल
के धागे पिरोते हो?
कवि, तुम शब्दों को क्या रूप देते हो!!


कविता तो जंगल है
विस्तृत सा,
तुम कैसे इस जंगल
में राहें खोज लेते हो?


कविता तो दर्पण है
मन का,
तुम कैसे इस दर्पण
में चेहरा खोज  लेते हो?
कवि, तुम शब्दों को क्या रूप देते हो?


कविता तो आकाश है
असीमित सा,
तुम कैसे इस आकाश
में ध्रुवतारा पहचान लेते हो?
कवि, तुम शब्दों को
क्या रूप देते हो!
जिसे तुम कविता का नाम देते हो.

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