Monday, 2 May 2016

'अपने किरदार को मौसम से बचाकर रखना
के फूलों में लौट कर कभी आती नहीं खुशबू।'

Monday, 25 April 2016

"मोहब्बत में ख्याल-ए-साहिल ओ' मंज़िल है नादानी
जो इन राहों पे लुट जाये, वही तक़दीर वाला है."

Wednesday, 20 April 2016

वो वस्ल की शब और वो एहसास-ए-क़ैफे मुख़्तसर
भीगा था चाँद भी जब तेरे हुस्न की रानाई में
अब धुआं धुआं से होते लफ्ज़ और खामोश चेहरे
दरो दीवार पर बदनुमां निशां हो गए हों जैसे ।।
अज़ाब लम्हों की खामोश कहानियों सा
गुमनाम सायों की असरार ए हस्ती सा
हर्फ ए बेआवाज़ और रुह ए बेकरार

मेरा एक शे'र कहीं खो गया है....

अज़ाब= suffering
असरार= secret

Tuesday, 19 April 2016

दिल ओ' दिमाग की लड़ाई में
सरहदों से फ़ासले हैं
इसकी मानें तो आशिक
उसकी कहें तो नाखुदा 


ख़ाकिस्तर हुए जाते हैं उनके नज़ाकत ए एहसास से यूँ
के जलते हुए दामन को भी हम मुहब्बत का नाम देते हैं

Saturday, 16 April 2016

चाँद उस रात कहीं न था। उसकी ग़ैर हाज़िरी खल तो रही थी मगर, कई मर्तबा यूँ भी तो होता है न कि किसी के न होने से, कई औरों के होने का एहसास ज़्यादा महसूस होता है। तो कल चाँद तो नहीं था पर तारों को आफ़ाक़ के उस बड़े से थाल में बिखरा हुआ पाया।

खामोश तन्हा अँधेरे रास्तों पर चलते कदमों की आहट और कुछ हल्की सरसराहटों के बीच जब उस छोटे से पुल के दाईं तरफ गुलाबों की पैदावार को देखते हुए हम गुज़रे तो हवाओं में घुली उनकी महक माहौल को और रूमानी बना रही थी। कहीं दूर से कुछ दबी आवाज में आने वाली आहटें और कभी खिलखिलाती ठिठोलियाँ....ये वो कारवां था जो उस अमावस की रात को मेहरौली के इतिहास और उसके जादू से रूबरू होने जा रहा था। और इसकी रहनुमाई कर रहे थे...असरदार, गहरी और करिश्माई आवाज़ के मालिक हमारे क़िस्सा गो आसिफ खान देहलवी।
उस रात की पहचान ही थी आवाज़ें। आवाजें ही ज़रिया बनी थीं एक दूसरे से पहचान का...कुदरत से पहचान का। कुछ पल के लिए ऐसा लगा कि जिन भूली बिसरी कायनातों से हम बिछुड़ चुके थे, आज फिर से उनसे मुलाकात हुई है।

दरख्तों के सायों से झांकता आसमान और हमसे बात करने को बेकरार बेहिसाब तारे... हाँ, वो झिंगुर भी जो अपनी आवाज़ से ही अपने होने का पता दे रहे थे। कुछ रूहानी रिश्ते और कुछ उस इतिहास के बचे खुचे से निशां जैसे आज कुछ कहना चाह रहे थे।

अशरफ़ कात्यानी की एक और मुलाकात के साथ वो हरी ठंडी दूब की नर्मी का एहसास और उस सूखे पेड़ की ओट से झांकता दिल्ली का गूरूर, वो मीनार, देखो आज भी आसमान छू रहा था।

 अनुशासनहीनता, अराजकता* और अनैतिकता** के उन असंख्य अवशेषों*** को तेजस्वी प्रकाश में बदलने की शक्ति इस ब्रह्मांड की दिव्यता**** है समय और स्थ...