उस दैवी शक्ति ने किया था
यह वरदान जब निश्चित
माँ बनी थी मैं, तुम्हारे
जादुई आकर्षण से मोहित।
कुछ हँसी, कुछ चोट, कुछ क्षति
कुछ पीड़ा, कुछ कष्ट और उपहति
तब सीखा तुमने सूत्र नव नूतन
हर दिन अनुभव, हो हर दिन अनुपम।
मेरे कंठहार, मेरे शीश मुकुट
निश्चल नंदन, सौम्यता संपन्न
बनो ऊर्जा के तुम शक्ति स्तंभ
जीवन पथ उन्नत, भेदो भय को
हर संकट, हर बाधा से निकलो।©