Friday, 16 October 2015

बरगद की जटाओं में आज वो भी उलझे बैठे हैं
इंसानी नादानियों का तकाज़ा किया करते थे कभीे।।

Thursday, 15 October 2015

नीयत-ए-ख़ालिस हैं आफ़ाक़ की ये शोखियां
न जाने किन लम्हों में दीदार-ए-माहताब हो जाए।।

Friday, 4 September 2015

बिखरा है जो मेरे घर की छत पे ये जो चाँदी सा
तेरे नूर की चादर का ही लश्कारा है।।

Friday, 28 August 2015

हिन्दी हाइकू

रक्षाबंधन
पावन बचपन 
यादों का झूला।।

प्रीत दुलार
आत्मीयता अपार
गहरा प्यार।।

Wednesday, 19 August 2015

ईद का चाँद भी नज़र अब आता है तन्हा मुझको

हैरां हूँ ऐ आसमां, तेरा रंग-ओ-अंदाज देख कर।।

Tuesday, 18 August 2015

याद आती है कलम की स्याही और किताब के पन्नों की खुशबू
जब खुली धूप में बैठकर हम खामोशियां सुना करते थे।।

Sunday, 9 August 2015

राज़ कैफे-जिंदगी का यही है मेरे यारां
के बेइख्तेयारी में ही गुनगुनाने की अदा पाई है।।

My window view

 Looking out of  My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current  Juncture. I lived a few Delightful  Mom...