Thursday, 3 December 2015

कुछ इस तरह से निकले
अपनी आरामगाहों से
यूँ बिखरे के फिर उड़ न पाये
जली शाख के परिंदे।।

छोड़ आई हूँ कुछ लम्हों को
उन बंद दरवाज़ों के पीछे
उन यादों की परछाइयों से भी
अब बेवफाईयों का रिश्ता है।।
सुबह की हल्की ठंडी धूप
और बहती हुई गुनगुनी बयार
उस पर यूँ के जैसे कहीं दूर
कोई गा रहा राग बहार।

सरसराती सी आहट यूं गुज़री है करीब से
जैसे हवा की सरगोशियों ने कुछ कहा है
कुछ छन्न सा टपका है पास ही कहीं!
तेरे आने का पैगाम तो नहीं आया है ?

वो अठखेलियां करती नन्ही गिलहरी
ये धीरे से लहराता पीला गुलाब
उस पपीहे की धीमी धीमी गुंजन
इशारा करती कोई मधुर सी आहट।

मेरे घर के उस गरम कोने में
कल एक सूरजमुखी खिला है।।




Friday, 16 October 2015

बरगद की जटाओं में आज वो भी उलझे बैठे हैं
इंसानी नादानियों का तकाज़ा किया करते थे कभीे।।

Thursday, 15 October 2015

नीयत-ए-ख़ालिस हैं आफ़ाक़ की ये शोखियां
न जाने किन लम्हों में दीदार-ए-माहताब हो जाए।।

Friday, 4 September 2015

बिखरा है जो मेरे घर की छत पे ये जो चाँदी सा
तेरे नूर की चादर का ही लश्कारा है।।

Friday, 28 August 2015

हिन्दी हाइकू

रक्षाबंधन
पावन बचपन 
यादों का झूला।।

प्रीत दुलार
आत्मीयता अपार
गहरा प्यार।।

 अनुशासनहीनता, अराजकता* और अनैतिकता** के उन असंख्य अवशेषों*** को तेजस्वी प्रकाश में बदलने की शक्ति इस ब्रह्मांड की दिव्यता**** है समय और स्थ...