हमने यूँ ही तो नहीं
दिल-ए-उम्मीद-वार
की कसम खाई है,
हर शाम उसके
डूबने से पहले, सूरज
की बिंदी रोज़ लगाई है।।
दिल-ए-उम्मीद-वार
की कसम खाई है,
हर शाम उसके
डूबने से पहले, सूरज
की बिंदी रोज़ लगाई है।।
Looking out of My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current Juncture. I lived a few Delightful Mom...