नीयत-ए-ख़ालिस हैं आफ़ाक़ की ये शोखियां
न जाने किन लम्हों में दीदार-ए-माहताब हो जाए।।
न जाने किन लम्हों में दीदार-ए-माहताब हो जाए।।
Looking out of My window I see wonder; Cease to think of The distressing Evocation of The current Juncture. I lived a few Delightful Mom...